शनिवार, 16 मई 2020

कोरोना के गीत

कोरोना के भय एने,सतावे ओने गरमी 

 सांसत में जान परल,बुझे ना बेशरमी 

रोंआ-रोंआ,गतरे-गतर ई जराई ,

कइसन महामारी कछु समुझे ना पाईं ।

  अकेले तऽ घरवा में डंसेले दुपहरिया 

   राते-दिने खोबसन लगावेले बयरिया 

कवन-कवन हाल हम कहि के बताईं।---

   कतीनन के काम ई,छोड़वलस बेदरदी

    थाना के सिपाही  घुमत बाड़ऽ कसि के वरदी 

लागत बा कि हाड़-मांस भूखे अंइठाई।- -

     अगिया-बैताल होलऽ,करीं जब बतिया

      निठुरे अनाड़ी होला, मरदा के जतिया

'कोरोना के जोधा' जान तोहरे कारन जाई।- -

      पैदल तू चलि के आवऽ, भेजऽ जनि सनेस हो

      उभ-चुभ करत बा जिया, लागल बा अनेस हो

लागता कि  F.I.R अबकी तोहरे पऽ लिखाई

'ललकी टोपीवाला' हतेयार् तू कसाई ।- -

मंगलवार, 21 अप्रैल 2009

रात

नीले नभ के तले, दो ह्रदय जो मिले,
मुस्कुराया गगन चाँदनी छा गई ।
मुस्कुराने लगी फूलों की डालियाँ,
गुनगुनाती भंवर रागिनी आ गई।

चाँद तारों के दीपक सजाने लगा,
पी- कहाँ- पी- पपीहा बुलाने लगा,
प्यार का रंग हर ओर छाने लगा,
रात कुछ ऐसी मनभाविनी आ गई।

खोई- खोई दिशा जगमगाने लगी ,
सहमी सहमी हँसी खिलखिलाने लगी,
रात ढलने लगी लो लजाती हुई ,
जैसे शर्मीली कोई दुल्हन आ गई ।

चाँदनी के बहाने जरा छुप के आ,
बात खुलने न पाये जरा चुपके आ ,
रात भी आ गई चाँद भी आ गया ,
जैसे तारों की झिलमिल बारात आ गई।

-नथुनी पाण्डेय "आजाद"-

बुधवार, 14 जनवरी 2009

धरती के गीत



(प्रस्तुत गीत का प्रसारण दूरदर्शन केन्द्र ,पलामू द्वारा २ जुलाई २००३ को किया गया )

गीत बदरी के छन -छन निहार लिखलीं
प्रीत धरती से लेके उधार लिखलीं
कबो अंचरा के ओरहन नयनवां कहे ,
कबो कजरा के कोरवा में लोरवा बहे ,
कबो अदरा के जतरा विचार लिखलीं ।
कहीं कुहुके कोइलि, पपिहरा बोले ,
कहीं झींगुर के शहनाई मधुरस घोले,
कबो रिमझिम फुहार के बहार लिखलीं।
कहीं बूडत नदी के किनारा मिलल ,
कहीं जूझत नैया के सहारा मिलल,
कबो माझी ,भंवर ,मझधार लिखलीं।
कहीं कोमल कलाई के चूड़ी चूमे ,
कहीं मोरवा के संगे -संगे मोरिनिया घूमे,
कबो कजरी आ कबहूँ मल्हार लिखलीं ।
रंग बदलत बा मौसम कई रूप में ,
छाँव में कबहूँ सूरज कबो धुप में ,
हर कदम कहीं जीत कहीं हार लिखलीं ।
-नथुनी पाण्डेय 'आजाद'-